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“Dhol Gawar Shudra Pashu Nari, Sakal Tadan Ke Adhikari” – Meaning and Explanation in hindi

“ढोल गवाँर सूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी”

यह दोहा तुलसीदास जी की रचना “रामचरितमानस” के अरण्यकांड में आता है। यह कथन भगवान राम के भक्त हनुमान जी द्वारा कहा गया है। इस पंक्ति को लेकर बहुत विवाद हुआ है, क्योंकि इसे कई लोग नारी व अन्य वर्गों के लिए अपमानजनक मानते हैं। लेकिन अगर इसे सही संदर्भ में देखा जाए, तो इसका गहरा अर्थ निकलता है।


1. दोहे का शाब्दिक अर्थ

“ढोल, गँवार, शूद्र, पशु और नारी – ये सभी ताड़ना (अनुशासन) के अधिकारी होते हैं।”

इसका सीधा अर्थ यह लिया जाता है कि इन सभी को अनुशासन में रखना चाहिए। लेकिन तुलसीदास जी का मूल उद्देश्य अपमान करना नहीं, बल्कि एक समाजशास्त्रीय संदर्भ देना था।


2. संदर्भ और व्याख्या

(i) ढोल

ढोल एक वाद्य यंत्र है जिसे बजाने के लिए प्रहार (प्रहार यानी मारना) करना पड़ता है। यह बिना चोट के ध्वनि नहीं निकालता। यह बताता है कि किसी भी यंत्र को सही तरीके से उपयोग करने के लिए नियंत्रण की आवश्यकता होती है।

(ii) गँवार

यहाँ ‘गँवार’ से आशय अनपढ़ या अज्ञानी व्यक्ति से है। अज्ञानता को दूर करने के लिए शिक्षा और अनुशासन जरूरी होता है। बिना मार्गदर्शन के कोई भी अज्ञानी व्यक्ति सही राह पर नहीं चल सकता।

(iii) शूद्र

प्राचीन भारतीय समाज में ‘शूद्र’ वे लोग थे जो सेवा कार्यों से जुड़े थे। यहाँ ‘शूद्र’ का अर्थ मेहनतकश व्यक्ति से है, जिसे सही मार्गदर्शन और अनुशासन की आवश्यकता होती है ताकि वह अपने कर्तव्यों का पालन कर सके। तुलसीदास जी ने यहाँ वर्ण व्यवस्था के संदर्भ में यह शब्द प्रयोग किया है, न कि किसी जातिवादी भावना से।

(iv) पशु

पशुओं को नियंत्रित करने के लिए अनुशासन की जरूरत होती है। यदि उन्हें खुला छोड़ दिया जाए तो वे नुकसान कर सकते हैं। इसलिए उन्हें नियंत्रण में रखना आवश्यक है।

(v) नारी

इस शब्द को लेकर सबसे अधिक विवाद होता है। कई लोग इसे महिलाओं के अपमान के रूप में देखते हैं, लेकिन वास्तव में तुलसीदास जी यहाँ महिलाओं की सुरक्षा की बात कर रहे हैं। प्राचीन काल में महिलाएँ सामाजिक रूप से कमजोर मानी जाती थीं और उन्हें मार्गदर्शन एवं सुरक्षा की आवश्यकता होती थी।


3. तुलसीदास जी का उद्देश्य

तुलसीदास जी समाज सुधारक थे और उन्होंने अपने समय की सामाजिक व्यवस्थाओं के अनुसार यह दोहा लिखा। उनका उद्देश्य किसी वर्ग का अपमान करना नहीं था, बल्कि यह बताना था कि कुछ चीज़ों को सही मार्गदर्शन और अनुशासन की आवश्यकता होती है।

अगर तुलसीदास जी स्त्री विरोधी होते, तो वे सीता माता, अनुसूया, अहिल्या, तारा, मंदोदरी जैसी महिलाओं का गुणगान क्यों करते? उन्होंने रामचरितमानस में नारी शक्ति और भक्ति की महिमा भी गाई है।


4. आधुनिक संदर्भ में इसकी व्याख्या

आज के समय में इस दोहे का शाब्दिक अर्थ लेने की बजाय इसे व्यापक दृष्टिकोण से समझना चाहिए। इसका असली अर्थ अनुशासन, शिक्षा और मार्गदर्शन की आवश्यकता को दर्शाना है।

ढोल – बिना सही ताल के बजाने से अच्छा संगीत नहीं निकलता।
गँवार (अज्ञानी) – बिना शिक्षा के सही दिशा में नहीं बढ़ सकता।
शूद्र (मेहनतकश वर्ग) – सही दिशा और अवसर मिलने पर ही उन्नति कर सकता है।
पशु – नियंत्रण और देखभाल की जरूरत होती है।
नारी – सुरक्षा और सम्मान की आवश्यकता होती है।

इसलिए इस दोहे को केवल नकारात्मक अर्थ में न लेकर, सही परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत है।

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